अफ़सर का कुत्ता

सुबह-सुबह  एक दिन गिरगिट जी हमारे घर आ धमके। मैंने सोचा आज भी कोई नया गुल  खिला होगा। या तो भौजाई ने इन्हें घर से निकाला होगा या फिर इनकी कहीं न कहीं अंगूरी दावत होगी।  लेकिन उनका मुँह खुलते ही मेरा अनुमान भूसे के ढेर की तरह भरभराकर नीचे आ गिरा।
उन्होंने चाय की चुस्की लेते हुए  मधुर-मधुर मुसकान बिखेरी और  बिन दाँतों वाले यानी अपने पोपले मुँह को मेरे दाएँ  कान से सटा दिया।  बोले यार गुनसेखर! चलो तुम्हें एक तमाशा दिखाता हूँ। मैंने सोचा कि ये कहीं ले जाके पंगा करवाके हें-हें हँसेगा। यह सोच ही रहा था कि  उसने चुटकी बजाई,अचानक झटका दिया  और कहा उठो चलो! हमारे साथ।
 मैंने थोड़ी आनाकानी की तो हाथ पकड़ कर सड़क पर ले आया। वहाँ क्या देखता हूँ कि बड़का इंजीनियर बाबू को एक्जीक्यूटिव साहब का बुलडाग मजे चखा रहा था। बड़का बाबू जब-जब और जो भी कोशिश करते  बुलडाग उसे नाकाम कर दे रहा था। इस तरह वे पिछले दो घंटों से कुत्ते के साथ कसरत कर रहे थे। वे कभी बाएँ तो कभी दाएँ झोला खा रहे थे और हम दोनों मजे ले रहे थे। कुछ ही पलों में वे घिसटते-घिसटते हम तक आ पहुँचे।आँखें  चार होते ही पहले नवोढ़ा की तरह लजाए ,शरमाए फिर बेशरम प्रौढ़ा की तरह बल खाते सामने से गुजर गए।
जब हम दोनों मजे ले रहे थे, ये महाशय अपने  साहब  और उनके कुत्ते के बीच किमाम बने जा रहे थे।
सबको पता है कि आफ़िस में इनकी खूब चलती है। लेकिन यह बिरलै ही किसी को पता होगा कि अधिशासी साहब की नज़र में इनकी वैल्यू उनके कुत्ते से कमतर ही है। शुरू-शुरू में ये ओवरसियर से भरती हुए थे। बाद में डिगरी या डिप्लोमा  का जुगाड़ करके होते-करते बीस साल में उप अभियंता तक जा पहुँचे थे। 
            अभी दो साल पहले मैं और गिरगिट पनिशमेंट पर उन्हीं के आफ़िस में फेंक दिए गए थे। गिरगिट जे.ई. है और ये साहब डी.ई। इसीलिएआए दिन किसी न किसी बात को लेकर इन  दोनों में में ठनी ही रहती है। इनकी कुछ करतूतें तो मुझे भी बुरी लगती हैं। जैसे हर ठेकेदार को घर बुलाना और उससे बड़ी-बड़ी गिफ्टें उलटवाना। इतना ही नहीं ये महाशय उन्हें टेंडर दिलवाने में एड़ी-चोटी का जोर लगाते-लगवाते हैं। ये इतने बड़े कलाकार हैं कि टेंडरों का एक्सरे करके पता लगा लेते हैं कि किसके फेफड़े में कितनी हवा भरी है? करते क्या हैं कि लिफाफों  का पीछे  से आपरेशन करके उसमें रेट पढ़ लेते हैं और अपने चहेते को बताकर उससे चवन्नी-अठन्नी मीटर/किलोमीटर कम के रेट वाले कोटेशन उनमें भरवाके ऐसे टांके मरवाते हैं कि पोसटमारटम
एक्सपर्ट भी न जान पाए कि कब और कहाँ टाँका मारा गया है?          
       
   गिरगिट ने बताया कि एक्जीक्यूटिव साहब के आने के के पहले यह उन्हीं की कुर्सी पर बैठता ही नहीं था बल्कि उसे सद्य:जात शिशु की भाँति चूमता-चाटता भी था। अब आया है ऊँट पहाड़ के नीचे।आज अपनी असली औकात में है। मजे लूट लो  मजे गुनसेखर! बुलडाग से भी अधिक खूँखार ढंग से भौंकने वाला ये पिल्ला आज देखो ये कैसी भीगी बिल्ली बना है? जब कुत्ते को इतना पुचकार और चूमचाट रहा है तो बड़े साहब के आगे ये कैसे खड़ा होता होगा?
वहाँ  से हटकर हमलोग घर आ गए । उस दिन तो इतवार ही था, अगलेदिन जब हमलोग आफ़िस पहुँचे तो क्या देखते हैं कि एक्जिक्यूटिव साहब अपने उसी बुलडाग के लिए मीटिंग बुलाए बैठे हैं जो कल ही डी.ई. साहब को नागिन-सी बल खाती सड़क पर नचा रहा था। उन्होंने अरजेंट मीटिंग इसलिए बुला रखी थी कि बीमार लकी कुछ खा-पी क्यों नहीं रहा था? कल तक दो-दो लीटर दूध और दो-दो किलो मांस चट कर जाने वाला लकी आज कुछ सूँघ तक नहीं रहा था।
 अर्जेंट मीटिंग काल किए जाने के कारणों के कयास लगाए जाने लगे। उनके घर काम पर लगे चार चपरासियों में से आफ़िस को वापस हुए एक के बदबूदार मुँह से लोगों ने अपने-अपने कान वैसे ही सटा दिए जैसे किसी प्रेस कानफ़्रेंस के मुखिया के मुँह में मीडया वाले अपने-अपने डंडू सटा देते हैं। ये मीडियावाले भी क्या गजब की बला होते हैं! एक बार इन लोगों ने एक राष्ट्रीय नेता के मुँह में इतने डंडू सटा दिए कि वह महीनों जनता से मुँह छिपाते फिरा। हुआ यह था कि इनकी पहले हम, पहले हम की मारामारी ने उस भले नेता के होंठ ही लहूलुहान कर दिए थे। नेता जी महीने भर तक तो कैबिनेट की बैठकों से बचते रहे। फ़ाइलें घर पर ही आती रहीं और ये साहब उन पर  अपनी चिड़ियाँ बैठाते रहे।काफ़ी दिन बाद गए भी तो पहले दिन लोगों ने चुटकियाँ लीं कि, ‘भाभी ने तो लेविंसकी को भी मात दे दी। उसने तो क्लिंटन को घायल नहीं किया था इन्होंने तो वह भी करके दिखा दिया।` खैर छोड़ो!इन मीडया वालों की तो माया ही अपरंपार है।
   हाँ, तो बता ये रहा था कि उस चपरासी ने इस मीटिंग का राज खोल ही दिया कि लकी बीमार हो गया है।लोग उनके लकी के लिए बढ़िया से बढ़िया चिकित्सक खोज कर लाएँ। शायद इसीलिए यह मीटिंग बुलाई गई हो। इस अनुमान से कि साहब कैसे भी खुश हों  लोग पहले लकी का हाल-चाल लेने लगे।वह इस लिए भी कि एक्जिक्यूटिव साहब के कुत्ता-प्रेम से सभी परिचित थे।    
          उस दिन की बैठक बढ़िया चिकित्सक की खोज के निर्देश के साथ समाप्त हो गई।
          अगले दिन फिर वही बैठक। बास के कदमों की आहट के साथ लोग कंक्रीट के खंभों की तरह जड़वत्  खड़े हो गए। साहब बैठ गए। लोग खड़े ही रहे। बहुत सारे निर्देश तो उन लोगों ने खड़े- खड़े ही निगले।
 
 
 
 
चिकित्सक के खोज-अभियान में सभी जी-जान से जुटे थे इसी लिए एक से एक नाम सझाए जा रहे थे। दो-तीन लोग अमेरिका के मशहूर पशु चिकित्सकों के भी नाम ले आए थे। काफ़ी देर बाद साहब नार्मल हो पाए उन्हें आया कि लोग खड़े ही हैं। उन्होंने बड़े प्यार से सभी को बैठने के लिए कहा। साहब की मनुष्यता और दरियादिली  पर सभी गदगद् और भावुक हो उठे। सभा विसर्जित होते ही सभी सेक्सनों के फ़ोन घनघना उठे। एक घंटे के भीतर पूरे पचास डोक्टर साहब के बंगले पर जमा हो गए थे। बीसों ठेकेदार,पचीसों इंजीनियर लकी के चरणों में बिछे थे।
           लकी के इलाज का सारा दारोमदार डी.ई. साहब पर था। वैसे भी लकी यातो बड़े साहब को या फ़िर डी.ई. साहब को ही अपने पास फटकने देता था। हाँ तो सबसे पहले गिरगिट के लाए डोक्टर का की जाँच-परख की जाने लगी। गिरगिट को लगा कि ये पिल्ला मुफ़्त में उस चिकित्सक का खून पी जाएगा, इसीलिए धीरे से उन्होंने अपने चिकित्सक की ओर इशारा किया पर वह तो घाघ नंबर एक था। बड़का बाबू यानी डी.ई. साहब  के हर सवाल का जवाब उसने बड़ी मुस्तैदी से दिया।
''डिग्री कहाँ की है'' के जवाब में उसने तपाक से  'ओक्सफ़ोर्ड' का नाम  लिया।स्पेशियलाइजेसन तक आते- आते वह क्रुद्ध  हो उठा और बोला कि 'इतनी जाँच  तो पूर्व प्रधानमंत्री बाजपेयी के पावन घुटनों का आपरेसन करने वाले डोक्टरों की भी नहीं हुई थी ।'  उसने गिरगिट की एक न सुनी और गिरगिट के बहाने उसने डी.ई. की खूब खिंचाई कर दी। गिरगिट के विपक्षी यह मान के खुश थे कि अब बड़का बाबू इसकी खबर लेंगे और गिरगिट के दोस्त यह सोचके खुश थे कि कम से कम कोई तो है जो बड़का बाबू की औकात बता रहा है।
                कई दिनों आफ़िस में सन्नाटा रहा। कुत्ता तो ठीक हो गया लेकिन गिरगिट का ट्रांसफर हो गयाथा।
                                                                                                                                           - डोक्टर गंगा प्रसाद शर्मा'गुणशेखर'