सावधान! गणेश जी दूध पी रहे हैं!

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प्रिय पठको! खूबसूरत शहर को बदसूरत कर देने के बाद देवताओं की भूख व प्यास दोनों बढ़ गई है।
                           सुना है कि देश के कई शहरों के गणेशों ने खूब छककर दूध पिया कै। बाढ़ की विभीषिका में मारे गए लोगों की श्रद्धा पर उतारू गणेश के साथ-साथ उनके पिता और जग के परमपिता भोले शंकर ने भी तांडव के बाद इनका साथ दिया है। इनके इस कृत्य में मां दुर्गा भी कुछ पीछे नहीं रहीं। बच्चों का क्या होगा?


                 
                          अखबार के मुखपृष्ट पर छपे एक चित्र में एक महिला और एक पुरूष दोनों का मिलकर बड़ी श्रद्धा से मुर्ति को दूध पिलाना श्रद्धा से अधिक मूर्खता ही लग रही है। सोच नहीं पा रहा हूं कि इनकी जड़ता को प्रणाम करुं या उस अंध भक्ति को जिसने इन्हें जन सेवा से मोड़कर पाषान सेवा में लगा दिया हे। अभी शहर का त्राहि-त्राहि कर रहा हैं और ये 'जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा, माता जिनकी पार्वती पिता महादेवा....' का झाँझ-मँजीरे के साथ कीर्तन करने पर तुले हैं।

                 
                         लगता है कि सचमुच इन्होंने भाँग, धतूरा और अफ्रीम का एक साथ सेवन कर लिया है वरना ऐसा कौनसा बेवकूफ होगा जो जीवित भगवान (इंसान) को छटपटाता छोड़ पाषाण-पिठरों को पूजने में जुट जाएगा। धन्य है धर्म भूमि भारत। यहाँ ऐसी परिस्थितियों में भी धर्म के साथ जुड़े कर्म को अलविदा कहा जा रहा है। बड़े महान लोग हैं इस देश में। उन्हें मूर्तियों की जितनी चिंता है उतनी जिंदा मूर्तियों की नहीं। चुहों को पिलाने के लिए सेंक्दो लिटर दुध हैं, लेकिन बच्चों को पिलने के लिये थोदा भी दुध नहीं।  अपना देश बड़ा चमत्कारी है। यहाँ मोरध्वज अपने ही बेटे को आरे से दूसरा नहीं है। यदी है तो बस भारत। इसीलिए यह देवभूमि है। क्योंकि यहां के लोग इनकी मूर्तियों के आगे जीभ, आँख, कान से लेकर समूचे बेटे को बलि चढ़ा देने में संकोच नहीं करते।  

 

                        अपना 'गिरगिट' बड़ा मुँफट आगमी हैं एक दिन अपने एक अभिन्न दिस्त से कसने लगा-- जा गणेश जी तुझे बुला रहे हैं। दुर्गा जी की चिट्ठी आई है और वह चिट्ठी अभी तक गणेश जी धरे बैठे हैं। उन्होंने मुझसे कहा है कि उसे जरा मेरे पास भेजना। धोखेबाज कहीं का। दुर्गा को पूरी जीभ चढ़ा आया और आज तक मुझे फटा नाखून या कटा-फटा फालतू बाल तक तक नहीं चढ़ाया। उलटे पाँच-पाँच लड्डू प्रसाद के रूप में लपेट ले जाता है।

                        मैं गिरगिट की बात से हैरान हो गया कि किसी मूर्ती ने उस्से बात की। वह मेरे आश्चर्य  जताते हुए बोला-मूरख मूर्ति जब दूध पी सकती है तो बोल क्यों नहीं?? अन्य त्रसदी में मरे लोगों में क्यों नहीं?? मेरा विश्वास हैं कि पूरा नया इंजीनियर किसी बिगड़े इंजन को तुरंत चालू कर सकता है। इस आधार पर मैं मूर्तियों के प्राण प्रतिष्ठापक पंडितों से हाथ जोड़कर विनती करता हूँ कि बाढ़ की विभीषिका में मरे लोगों में प्राण प्रतिष्ठा कर उन अशायों के जीवन में खुशी जरूर लाएं जिनके परिवारी जनों को अभि-अभि पानी का कराल काले अनाथ कर गया हैं और उनके परिवार जनों की मू_रतियों के भरोसे छोड़ गया है।

                        शायद मेरी प्राथर्ना ऐसे जीवित ईश्वरों के द्वारा सुनी जएगी और उजड़े घरों की अँधेरी कोठरी में भी आशा की किरण फुँवहेगी। अपने पाठकों से लगे काथ विनती करता हूँ कि गणेश, दुर्गा और भोले भंडारी के पीने से बेच दूध का प्रसाद उन बच्चों को जरूर पिलाएँ जिनकी माँ का दूध सूख गया है और बच्चा बिलबिलाकर माँ के स्तनों को काट-काट कर लहूलुहान कर रहा है।

                     जय गणेश। जय दुर्गा। जय भोले।

   -गुणशेखर