हमारी राजभाषा हिंदी जो भारत राष्ट्र के जन-जन के पवित्र मुख की शोभा है, करोड़ों की वंदनीय जननी है, इसका अपमन हो और करोड़ों मुख और हाथ चुप रहे यह आश्चर्य की बात है। खैर! यह आश्चर्य भारत में कोई फली बार नहीं हुआ है। यहाँ जयचंदों और मीर जाफरों की एक लम्बी कतार रही है। इस कतार के आखिरी व्यक्ति के गुजरने के पहले ही कोई न कोई अवतार हो ही जाता है। इन अवतारों ने ऐसी परंपरा का विकास कर डाला है कि हम अपनी भाषा क्या भूमि तक को नीलाम करने वालों के चरण चुंबन में गौरव का अनुभव करते हैं। कोई मकबूल फिदा हुसैन जब अपनी भारत माता का नग्न चित्र बनाता हैतो लोग रजनीतिक रोटियाँ सेंकने लते हैं और मकबूल फिर महफूज रह जाता है भारत माता को नंगा और अपमानित करने के लिए। जब तक एक राष्ट्रीय संस्कृति का विकास नहीं होता कोई भी हमारे राष्ट्र, राष्ट्र ध्वज, राष्ट्रभाषा(कानूनी नाम राजभाषा) या किसी भी सांस्कृतिक प्रतीक पर कभी भी और खीं भी थूँक सकता है।