तपे आगि माँ तब बने,तुलसी,सूर,कबीर।
बेटवा जबते बड़ेभे ,दिलु भा रेगिस्तान।
फिरहूँ ममता मातु की ,सींचइ फ़सल सुखान।।
जरिया सारी बेंचि कइ,जीका किहिसि इलाजु।
धरिसि गड़ांसा गरे पर, वहइ पुतउना आजु।।
कुछु मा कुछु लगबइ करी, रंगु हमारे अंग।
इउ कहबुइ बेकार हइ, 'का करि सकत कुसंग'।।
पहिले देखेउ परिस्थिति,तब कीन्हेउ तकरार।
बड़े-बड़े बिरवा बहे, जो थे बसे कगार।।
बिरह अगिनि ते हइ कहूँ, कम कविताई पीर।
तपे आगि माँ तब बने,तुलसी,सूर,कबीर।।
चहइ नहावइ नील ते,चहइ मुड़ावइ केस।
जब तक असली चाम नहिं, का बदले भा भेस।।
मँह गाई की मार मा, बचइ न ध्याला सेस।
जब तक नेता भ्रस्ट हइँ ,सुखी न होई देस।।
तुम बिंलगे जउ डार-डार हम मछई हर पात।
तुमरेउ घर की पता हइ, हमका सारी बात।
का कीका कुछु मिला हइ, जग मरजादा लाँघ।
याक जाँघ की लाज का कहइ न द्वासरि जाँघ।
-डोक्टर गंगा प्रसाद शर्मा'गुणशेखर'