बरखारानी

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जून,जुलाई जब-जब आए
सारी गर्मी हर ले जाए
ऐसी मस्त बयार बहे कि
धरती का कण-कण मुस्काए
खुल गयी  किस्मत बनी किसानी। 

 
खूब झमाझम बरसा पानी।
सारे जग का जीवन जल है
बिना बरिश के उथल पुथल है
माता-पिता सभी रिश्तों में
बस सिरमौर यही तो जल है

गोटो वाली चूनर धानी।

पहन के आई है पटरानी।
हरियली की बांकी झांकी
निकली है जो धरती मां की
रूठेगी तो लुट जाएगी
तुम पर बहुत भरोसा बांकी

आओ बैठे,कहे कहानी।
बरखा रानी-बरखा रानी।
घर बाहर सब पानी-पानी

 


लुढ़के पड़े हैं जेठ जेठानी


खूब छपाछप बच्चे खेलें 
मर गयी सब चूहों की नानी।
मरने  देना कभी न पानी
बरखा रानी-बरखा रानी।

                 
        

                                                                                           -गुणशेखर