बाँध मेरे गाँव का पानी शहर गया
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बाँध मेरे गाँव का पानी शहर गया
अंगद के पाँव सा वहीं पर ठहर गया
हर जवाँ योजना परधान के हरम में
इस तरह विकास हर गाँव गया
नरेगा करेगा तो पेट भर जाएगा
बाप के साथ-साथ बेटा नहर गया
जो मजूर लापता है चार-पाँच रोज से
पुलिस ने कहा डूब के मर गया
आज भी काम-काज ठप्प रहा संसद में
क्या कहें किससे कहें कहाँ-कहाँ कहर गया
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माँ सहज विश्वास है
माँ सहज विश्वास है
नवल जीवन आस है
मलय पवन-सी सदा
इक सरस अहसास है
दूब-सी पावन दुआ
नवल जीवन आस है
चाँदनी है चाँद की
फूल की सुवास है
कुछ अलग लगे मगर
न आम है न खास है
छाँह-सी साथ-साथ
दूर है न पास है
मंज़िले मकसूद तक
ममत्व की उजास है
भरे हुए मन के
दर्द की निकास है
रसभरी है कभी
आम की मिठास है
मँ बसी रोम-रोम
साँस साँस साँस है
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चाचा तुम्हें नमन!!
खून पसीने के गारे से भरी नींव सारी थी जिसने,
नए देश के नए भवन की नई नींव डाली थी जिसने।
बापू के सपनों के तारे उस चमकीले ध्रुव को,
बड़े मान से हृदय बसाया ‘चाचा‘ कहकर जग ने
गंगा लहर-लहर गाती है कजरी, गीत, भजन।
पंडित नेहरू तुम्हें नमन है, चाचा तुम्हें नमन!
तुम गौरव थे भारत माँ के, हुए सपूत निराले,
दुर्दिन के बादल सब छाँटे, पथ के शूल निकाले।
सूरज बनकर चमके दिन में, बने चाँद रजनी में,
और, धरा पर फूल बिछाकर चुपके गए बिदा ले।
भरे सुगंधित मलय पवन को मोहक मधुर छुवन।
पुलक-पुलक फसलें हरसातीं, लहराते तन-मन॥
तुम बच्चों के प्यारे ‘चाचा‘ बच्चे तुम्हें दुलारे ।
हर संकट में उन्हें दौड़े, जब-जब तुम्हें पुकारे।
उन गुलाब- से शिशुओं को तुम दिल से सदा लगाए,
काँटे, फूल बनाए सारे फिर फूलों से हारें
उसी हार से आज तुम्हारा करके अभिनन्दन।
चरण चूम, आशीष शीश धर, कर लें शिशु वंदन॥
गीत, ग़ज़ल है नाम तुम्हारा देह तुम्हारी छंद
मधुर मंद मुस्कान तुम्हारी मंगलमयी प्रबंध।
झरने जैसी धवल मनोहर वाणी के उद्गाता-
‘गीता‘ है सब ग्रंथ तुम्हारे भाषण ललित निबंध।
जिनको गोद खिलाया तुमने वही महान सुवन।
आग लगाकर ताप रहे हैं तेरा चन्दन-वन॥
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डॉ.गंगा प्रसाद शर्मा 'गुणशेखर'