तुम और तुम्हारी पुलिस !
अपने नकारा होने की खामी
मढ़ दो पड़ोसी के गले
उसकी समूची जाति को कर दो घोषित
बर्बर,आततायी
खुद एक हाथ से लुंगी सँभाले
सुड़कते रहो चा
भले ही
तुम्हारी ठीक बगल में खड़ा
तुम्हारी चा बनाके लाने वाली
नौकरानी का छोरा
टपकाता रहे लार, टपकाने दो
साले भड़ुए(आपका ही प्रिय संबोधन) को
तुम मँहगाई और भ्रष्टाचार को
माई-बाप मान चढ़ाए रहो कंधे
कराते रहो तीर्थाटन
बन जाओ श्रवण कुमार
लूटते रहो पुण्य
वैसे भी तुम्हारी नज़र में
अपराधी,
व्यक्ति नहीं, जाति और प्रदेश होता है
करके अपराध निकल जाते हैं बेधड़क
साले अपराधी,अपने गाँव, शहर
और सोती रह जाती है
दूध की धुली
तुम्हारी अबोध और बेदाग पुलिस?
उस समय क्या
तुम और तुम्हारी पुलिस !
अपनी ...
खैर...छोड़ो !
यह सब तुम और तुम्हारी पुलिस को ही शोभा देता है।
--डोक्टर गंगा प्रसाद शर्मा'गुणशेखर'