बड़े होना जल्दी-जल्दी बेटा!

अभी -अभी
देकर गई है दाई
यह खुशखबरी कि-
बेटा!
तुम आ गए हो
अपनी माँ के
आँसुओँ से भिगो-भिगो कर
छापे गए खुशबूदार फूलों वाले
गीले- गीले आँचल में
माँ से सुना है कि
तू घर भर में सुन्दरतम है
 हो भी क्यों न
उसके बेटे का बेटा है जो
मैंने दाई को
छुप के कुछ देते हुए देखा है उसे
उसके आँचल के खूँट की ऐंठन
बता रही है उसकी चोरी 
मैं,
पकड़ के हिला ही देता हूँ
 माँ के दोनों कंधे
कबूल लेती है ममतामयी माँ
अपनी चोरी खुशी की
कितना अच्छा लगेगा
कल को जब तुम काटोगे
अपनी चोर दँतियों से
जैसे,
मैं काटा करता था
कभी माँ को तो कभी बापू को
गीला कर देना बिस्तर
मैं सरक के सो लूँगा
और तुमहारे नीचे कर दूँगा
सूखा-सूखा गरम बिछौना
गाहे-बगाहे, यही तो-
याद दिलाती रहती है मेरी माँ
तुझे तेरी माँ न भी दिलाए याद तो भी
 याद रखना मेरे लाल!
माँ का क्या
गीली बहुत जल्दी हो जाती है
पर सूखती बहुत देर में है
बेटा! भिगोना मत कभी अपनी माँ को
पिता का क्या है
अव्वल तो वह भीगेगा ही नहीं
और भीग भी गयातो
माँ को गरिया के
झाड़ लेगा पल्ला
पर माँ मरते दम तक
नहीं झाड़ सकती अपना पल्लू
पड़ोसी का छोरा
 जब चलाता है लात अपने बाप पर
और गरियाता है माँ को
मेरी माँ सहम जाती है
बाप के मरे बिना ही
जब विधवा हो जाती है
उसकी अधबयसू माँ
मेरी माँ भी
अपने माथे का सिंदूर
 टटोलती है
तुम ऐसा मत करना कि
काँपे किसी पड़ोसी की माँ
माँ की कद्र ज़रूर करना बेटे!
बाप का क्या है लात खाकर भी
रह लेगा खुश
सह लेगा हज़ार दुख
धर लेगा बर्फ़ के शिलाखंड छातीपर
माँ, माँ फूट पड़ेगी
गंगोत्री की तरह
फिर,
फिर कौन सँभालेगा उसे
मैं कोई शंकर तो नहीं
जो भर लूँगा जटाओं में
बेटे!
बड़े होना जल्दी-जल्दी
पर, इतनी जल्दी भी नहीं कि
कि कुचल दो ममता की लता
और चला दो
पिता के वात्सल्य के बरगदी तने पर
तान-तान कर कुल्हाड़ा
बेटा इतनी तो रखना लाज
कि तुम्हारा बाप
 जो काँप और काँख रहा था
अभी-अभी बारह बजे तक
दहक उठा है खुशी से उसका दिल
चहक उठा है उसका मन-पंछी
इस चहक को बनाए रखना मेरे लाल्
कभी सुनोगे तो जानोगे सच्चाई
कि न तो उसके पास कोई कंबल है न रजाई
फिर भी हिरनौटा-सा उछल रहा है 
माह जनवरी है
और रात के बारह बजे हैं!

 

गंगाप्रसाद शर्मा 'गुणशेखर'