अवधी-दोहे

 

 

 

 

तुमरे घर  मा  का बना, को आवा कल रात।
काहे ऊ भोरहेन गवा, बिन रगड़ा, बिन बात।।
याक बिटेउनी राति मा, रोजु जाति है ख्यात।
कौनु बतावै बात या अउर बढ़ावइ बात।।
लरिकउना का मनु भवा, कइ लेइ  गया , परयाग।
यहिके बदिका दइ दिहिसि मइया कइहां आग।।

नाक कटाए बैठि हउ, कहाँ कन्हैया आजु।।
गोपिन के कपड़ा  लिहे उड़ा जाति है   बाजु।।


कान्हा बंदी हइ जहाँ, छुटटा है सिसुपाल ।
गला घोंटती न्याय का,हत्यारिन चौपाल। 
तुम का हमका दइ  दिहेउ , उठि भोरहे आवाज़।
मन रविशंकर होइ गवा , तन बिरजू महराज।।
लरिका,   बिटया, जानवर औ करजा की  बाढ़ि।
बाँटइँ बयाधी, रोगु अ उ ले इँ करेजा काढ़ि।
बप्पा बरगद बिरिछ ह इं ,अम्मा निंबिया छाँह ।
हवा बहिनिया -सी सदा, पकरि जगावे बाँह।।
चरन, चोंच,गुन एक सब दिखै ना अनतरु रंच।
कैसन केउ जान इ हियां, को राकस, को संत।।
कहिने को जो संत हैं या हैं  बड़े महंत ।
इनिके पापन के घड़े , लुढ़के परे अनंत ।।
तुम दिल्ली मा परे हौ , हम हन गंडक तीर।
का कही  लागति नहीं , कुछु कम तुमरिव पीर।।

रोजु कुत उना  बाग माँ , रोवति है दिनु  -राति।
कुछुमा कुछु होइ कै रहि टरी न या बरसाति।।
घुघुआ बैठा डार पर , राति रोजु घुघुआ इ  ।
जाने कीका प्यार ते,फिरते रहा बोलाइ    ।।
सैयां तउ सरगै गये , भइया गे गुजरात ।
नोनु जुरै तौ दालि नहि , का गरमी बरसात ।।
रोजु लगे ते काम मा , घर कै बरकत होइ ।
हँसी- खुसी घर मा भरइ,  जाइ गरीबी धोइ।।